बैतूल। भारत भारती में आज बिरसा भगवान की जयंती गौरव दिवस के रूप में मनाई गई। इस अवसर पर जनजाति शिक्षा के राष्ट्रीय सह- संयोजक बुधपाल सिंह ठाकुर, भारत भारती के सचिव मोहन नागर, डॉक्टर रमापति मणि त्रिपाठी, यशवंतराव अलोने, प्राचार्य गोविंद कारपेंटर, गोलू सिरसाम एवं परिसर वासियों ने भगवान बिरसा मुण्डा के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर पुष्पांजलि अर्पित की।
बकरी चराने में बीता मुंडा का जीवन
15 नवंबर अ_ारह सौ पचहत्तर में झारखंड क्षेत्र में एक साधारण जनजाति परिवार में जन्म लेकर बकरियां चराने में बिरसा का बचपन बीता। बिरसा थोड़ा बड़ा हुआ तो उसके मन में पढऩे की ललक जगी उसने चाईबासा की स्थाई मिशन स्कूल में दाखिला ले लिया। परंतु स्कूल में बिरसा के पहनावे को लेकर पादरी ने मजाक उड़ाया इस पर बिरसा ने भी और उनके धर्म का मजाक उड़ाना शुरू कर दीया।
निकाल दिया था स्कूल से
इसाई धर्म प्रचारक को इसको कहां सहन करने वाले थे? उन्होंने बिरसा को स्कूल से निकाल दिया। यह उल्लेखनीय बिरसा के पिता सुगना मुण्डा उनके चाचा ताऊ सभी ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके थे और जर्मन प्रचारक के ही सहयोगी के रूप में काम करते थे। ऐसे बिरसा के अंदर मिशनरियों के विरुद्ध रोष पैदा होना किसी चमत्कार से कम नहीं था।
स्पर्श मात्र से हो जाते थे रोग दूर
स्कूल छोडऩे के बाद बिरसा के जीवन में नया मोड़ आया स्वामी आनंद से उनका संपर्क हुआ और उसके बाद महाभारत, हिंदू धर्म का ज्ञान हुआ। 1895 में कुछ ऐसी घटना घटी कि बिरसा के स्पर्श मात्र से लोगो के रोग दूर होने लगे। किसानों के शोषण के विरुद्ध आवाज उठा कर बिरसा ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध बिगूल फंूक दिया। लोगों को मादक पदार्थों से दुर रहने की सलाह दी।
श्रद्धा ने मुंडा को बनाया भगवान
जन सामान्य में बिरसा के प्रति दृढ विश्वास ओर आगाध श्रृद्दा ने उन्हें भगवान का अवतार बना दिया। लोगों को शोषण और अन्याय से मुक्त कराने का काम भगवान ही तो करते हैं। वही काम किया है भगवान के उपदेशों का असर समाज पर होने लगा। और जो मुंडा ईसाई बन गए थे वे पुन: हिन्दू धर्म मे लौटने लगे।
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Nov 2020
by kchurhey73